शनिवार, 2 मई 2015

जापान का आपदा प्रबंधन : दूसरों के लिए एक मिसाल

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 1 हजार भूकंप झेलकर भी जिंदा है ये देश। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ बेहतर आपदा प्रबंधन और चेतावनी प्रणाली कम ही लोग जानते हैं ‌कि जापान जिस भूभाग पर बसा है वो भूभाग धरती की सबसे अशांत टिक्टेनिक प्लेटों पर स्थित है। इन प्लेटों के बदलने के चलते जापान में समय समय पर भूकंप आते रहते हैं। जापान चूंकि भूकंप का केंद्र हैं इसलिए जापान में भूकंप की मॉनिटरिंग करने का सिस्टम काफी मजबूत और अपडेट है। जापान की मेट्रोलॉजिकल एजेंसी जापान को छह स्तरों पर लगातार और हर पल मॉनिटर करती रहती है। सुनामी वार्निंग प्रणाली भी इसी एजेंसी के तहत काम करती है। सुनामी और भूकंप मॉनिटरिंग प्रणाली के तहत सिसमिक स्टेशन (प्लेटों में बदलाव पर नजर रखने वाला स्टेशन) के साथ साथ छह रीजनल क्षेत्रों पर नजर रखती है। इसकी बदौलत (JMA) केवल तीन मिनट के भीतर ही भूकंप और सुनामी की चेतावनी पूरे देश में जारी कर देती है। जैसे ही भूकंप आता है, कुछ ही सैकेंड में भूकंप का केंद्र, रिक्टर स्केल और मेग्नीट्यूड संबंधी सारी जानकारी तुरंत ही देश के सभी टीवी चैनलों पर जारी कर दी जाती है। इसी के साथ अगर सुनामी का खतरा है तो सुनामी की चेतावनी भी जारी होती है और कहां कहां खतरा है, सभी लोकेशन नेशनल टीवी पर बताए जाते हैं। कुल मिलाकर टीवी पर ये जानकारी साठ सैकेंड के भीतर जारी की जाती है ताकि जनता भूकंप के खतरे को समझकर बचाव पर ध्यान दे। कई क्षेत्रों में लाउडस्पीकर लगाए गए हैं ताकि आपदा की जानकारी दी जा सके नन्हें बच्चों को ‌दी जाती है आपदा प्रबंधन की ट्रे‌निंग दुनिया में जापान एकमात्र देश है जहां प्राइमरी कक्षा से ही बच्चों को भूकंप और सुनामी से बचने की ट्रेनिंग दी जाती है। ये ट्रेनिंग प्राइमरी स्तर पर अनिवार्य है और इसके अलावा भी देश भर में सरकारी एजेंसिया समय समय पर लोगों को आपदा प्रबंधन के नए नए तरीके सिखाती रहती हैं। स्कूलों में बच्चों को भूकंप के समय किस तरह, कहां छिपना है और खुद को बचाना है, सिखाया जाता है। बच्चों को बतायाजाता है कि अगर वो स्कूल में हैं तो भूकंप आने पर डेस्क के नीचे छिप जाएं। अगर वो घर या किसी ऊंची इमारत में हैं तो भूकंप आने पर सीढ़ियों से उतरते हुए पार्क या मैदान में आ जाए। छोटे छोटे बच्चों को मॉक ड्रिेल के दौरान स्कूल और इमारतों से निकलने के तरीके बताए जाते हैं। घरों के फर्नीचर के बीच से किस तरह बचते हुए बाहर आएं और किस तरह दूसरे घायलों की सहायता करें, ये सभी उपाय बच्चों को सिखाए जाते हैं। हर साल एक सितंबर जापान में आपदा रोकथाम दिवस के तौर मनाया जाता है। एक से पांच सितंबर तक आपदा प्रबंधन सप्ताह मनाया जाता है जिसमें देश के पीएम तक मॉक ड्रिल में हिस्सा लेते हैं। भूकंप रोधी इमारतें जापान जानता है कि भूकंप आने पर सबसे ज्यादा प्रभाव इमारत की नींव पर पड़ती है। नींव के हिलते ही इमारत के बाकी और ऊपरी हिस्से डगमगाकर गिर पड़ते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए जापान में भूकंप से बचने के‌ लिए स्प्रिंग बेस प्रणाली के तहत इमारतें तैयारी की जाती है जिससे भूकंप के बड़े झटके आने पर भी इमारत न गिरे। इसके अलावा गद्देदार‌ सिलेंडरों के बेस वाली नींव भी जापान में खूब प्रचलित है। इसके तहत रबर के सिलेंडरों और स्टील के स्प्रिंग वाले बेस पर इमारत खड़ी की जाती है। भूकंप आने पर ये रबर सिलेंडर वाली नींव खुद ही हिल डुल कर स्थिर हो जाती है और ऊपरी इमारत ज्यों की त्यों रहती है। ऊर्जा को सोख लेने वाली प्लास्टिक नींव भी जापान में इमारत बनाने के लिए काम आती है। प्लास्टिक मालफोरमेशन से बनी ये नींव धरती से ऊर्जा निकलते ही उसे अपने में समाहित कर लेती है और ऊपरी इमारत कंपन से बची रहती है। भूकंप से बचाने वाली इमारत बनाने के लिए ईंटों और सीमेंट की नींव यहां नहीं बनाई जाती। सुनामी पर भी काफी सजग है जापान जापान के पास सूनामी की चेतावनी देने वाली दुनिया की सबसे अत्याधुनिक प्रणाली है इस प्रणाली के तहत कुछ ही सैकेंड में JMA सुनामी की गति, स्थिति, ऊंचाई आदि जानकारी सुनामी प्रभावित इलाकों में जारी कर देता है। आपदा प्रबंधन के साथ साथ राहत और बचाव के मामले में भी जापान कई देशों से आगे है। जापान के कई तटों पर सूनामी रोधी शैल्टर बनाए गए हैं ताकि समद्र किनारे बसे लोग आपात स्थिति में इन शैल्टरों की शरण में जा सकें ओर शरण ले सकें। आखिरी और सबसे खास बात ये है कि आपदा के वक्त सभी विभागों का नेतृत्व खुद प्रधानमंत्री के हाथों में होता है। दरअसल जापान में आपदा प्रबंधन विभाग के मुखिया खुद प्रधानमंत्री हैं और आपदा के समय पीएम खुद सारे निर्णय लेते हैं।

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