गुरुवार, 15 अगस्त 2019

नैतिक शिक्षा: समय की ज़रूरत

हम प्रतिदिन नैतिक शिक्षा और उसके महत्त्व के बारे में किसी न किसी से सुनते ही रहते हैं। परंतु फिर भी इसका पालन कर पाने में हम कोई गंभीरता नहीं दिखा पाते। जीवन की भाग दौड़ के बीच नैतिकता मात्र शब्द बनकर रह गई है जिस पर अच्छा लिखा तो जा सकता है लेकिन जब बात जीवन में धारण करने की आती है तब समय की कमी बताकर हम कदम पीछे खींच लेते हैं।
वास्तव में नैतिक मूल्यों से ही नैतिक आचरण की उत्पत्ति होती है। जब तक हम स्वयं को नैतिकता के मार्ग पर नहीं चलाते तब तक हम समाज से भी नैतिकता की आशा नहीं कर सकते। आखिर समाज का अभिन्न अंग हम ही तो हैं। समाज का निर्माण हम से ही तो हुआ है। अतः नैतिकता पूर्ण आचरण का प्रारंभ हम से ही होगा।
हम समाज को जिस रूप में देखना चाहते हैं हमे भी वैसा ही बनना पड़ेगा। एक आदर्श समाज का निर्माण आदर्श नागरिकों से ही संभव है और आदर्श का आधार हैं हमारे नौनिहाल अर्थात छात्र! जब छात्रों में नैतिकता का संचरण होगा तो समाज स्वमेव आदर्शवाद की ओर अग्रसर होना प्रारंभ होगा।

आदर्श के इसी महत्त्व को रेखांकित करते हुए किसी विद्वान ने कहा था- "बच्चों कार की नहीं, संस्कार की ज़रूरत है।"
संस्कार अच्छे होंगे तो वो न जाने कितनी कारें अर्थात सुख-सुविधा के साधन खुद ही जुटा लेगा।

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