बुधवार, 19 नवंबर 2014

झाँसी की रानी

रानी लक्ष्मीबाई (जन्म: 19 नवम्बर 1835– मृत्यु: 17 जून 1858) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थीं जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से संग्राम किया और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की किन्तु जीते जी अंग्रेजों को अपनी झाँसी पर कब्जा नहीं करने दिया। लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में 19 नवम्बर 1835 को हुआ था। उसके बचपन का नाम मणिकर्णिका था परन्तु प्यार से उसे मनु कहा जाता था। मनु की माँ का नाम भागीरथीबाई तथा पिता का नाम मोरोपन्त तांबे था। मोरोपन्त एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। डलहौजी की राज्य हड़प नीति के अन्तर्गत ब्रिटिश राज ने बालक दामोदर राव को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया तथा झाँसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया। तब रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानी वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर कर दिया। यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना खर्च में से काटने का फरमान जारी कर दिया। इसके परिणामस्वरूप रानी को झाँसी का किला छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया। झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया। 1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी। ऐसी वीरांगना को शत शत नमन् जय माँ भारती

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