शनिवार, 8 नवंबर 2014

भारत को जानो

अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने. ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये. यही है हमारी संस्कृति की पहचान. ************ ************ ( ०१ ) दो पक्ष- कृष्ण पक्ष , शुक्ल पक्ष ! ( ०२ ) तीन ऋण - देव ऋण , पितृ ऋण , ऋषि ऋण ! ( ०३ ) चार युग - सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग , कलियुग ! ( ०४ ) चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ , जगन्नाथ पुरी , रामेश्वरम धाम ! ( ०५ ) चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ) ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम ) गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) , शृंगेरीपीठ ! ( ०६ ) चार वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद , यजुर्वेद , सामवेद ! ( ०७ ) चार आश्रम - ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ , संन्यास ! ( ०८ ) चार अंतःकरण - मन , बुद्धि , चित्त , अहंकार ! ( ०९ ) पञ्च गव्य - गाय का घी , दूध , दही , गोमूत्र , गोबर ! ( १० ) पञ्च देव - गणेश , विष्णु , शिव , देवी , सूर्य ! ( ११ ) पंच तत्त्व - पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु , आकाश ! ( १२ ) छह दर्शन - वैशेषिक , न्याय , सांख्य , योग , पूर्व मिसांसा , दक्षिण मिसांसा ! ( १३ ) सप्त ऋषि - विश्वामित्र , जमदाग्नि , भरद्वाज , गौतम , अत्री , वशिष्ठ और कश्यप! ( १४ ) सप्त पुरी - अयोध्या पुरी , मथुरा पुरी , माया पुरी ( हरिद्वार ) , काशी , कांची ( शिन कांची - विष्णु कांची ) , अवंतिका और द्वारिका पुरी ! ( १५ ) आठ योग - यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान एवं समािध ! ( १६ ) आठ लक्ष्मी - आग्घ , विद्या , सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य , भोग ,एवं योग लक्ष्मी ! ( १७ ) नव दुर्गा -- शैल पुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी एवं सिद्धिदात्री ! ( १८ ) दस दिशाएं - पूर्व , पश्चिम , उत्तर , दक्षिण , ईशान , नैऋत्य , वायव्य , अग्नि आकाश एवं पाताल ! ( १९ ) मुख्य ११ अवतार - मत्स्य , कच्छप , वराह , नरसिंह , वामन , परशुराम , श्री राम , कृष्ण , बलराम , बुद्ध , एवं कल्कि ! ( २० ) बारह मास - चैत्र , वैशाख , ज्येष्ठ , अषाढ , श्रावण , भाद्रपद , अश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष , पौष , माघ , फागुन ! ( २१ ) बारह राशी - मेष , वृषभ , मिथुन , कर्क , सिंह , कन्या , तुला , वृश्चिक , धनु , मकर , कुंभ , कन्या ! ( २२ ) बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ , मल्लिकार्जुन , महाकाल , ओमकारेश्वर , बैजनाथ , रामेश्वरम , विश्वनाथ , त्र्यंबकेश्वर , केदारनाथ , घुष्नेश्वर , भीमाशंकर , नागेश्वर ! ( २३ ) पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा , द्वितीय , तृतीय , चतुर्थी , पंचमी , षष्ठी , सप्तमी , अष्टमी , नवमी , दशमी , एकादशी , द्वादशी , त्रयोदशी , चतुर्दशी , पूर्णिमा , अमावास्या ! ( २४ ) स्मृतियां - मनु , विष्णु , अत्री , हारीत , याज्ञवल्क्य , उशना , अंगीरा , यम , आपस्तम्ब , सर्वत , कात्यायन , ब्रहस्पति , पराशर , व्यास , शांख्य , लिखित , दक्ष , शातातप , वशिष्ठ ! ********************** ॐ शाति ।। "............."माँ"............." माँ- दुःख में सुख का एहसास है, माँ - हरपल मेरे आस पास है । माँ- घर की आत्मा है, माँ- साक्षात् परमात्मा है । माँ- आरती, अज़ान है, माँ- गीता और कुरआन है । माँ- ठण्ड में गुनगुनी धूप है, माँ- उस रब का ही एक रूप है । माँ- तपती धूप में साया है, माँ- आदि शक्ति महामाया है । माँ- जीवन में प्रकाश है, माँ- निराशा में आस है । माँ- महीनों में सावन है, माँ- गंगा सी पावन है । माँ- वृक्षों में पीपल है, माँ- फलों में श्रीफल है । माँ- देवियों में गायत्री है, माँ- मनुज देह में सावित्री है । माँ- ईश् वंदना का गायन है, माँ- चलती फिरती रामायन है । माँ- रत्नों की माला है, माँ- अँधेरे में उजाला है, माँ- बंदन और रोली है, माँ- रक्षासूत्र की मौली है । माँ- ममता का प्याला है, माँ- शीत में दुशाला है । माँ- गुड सी मीठी बोली है, माँ- ईद, दिवाली, होली है । माँ- इस जहाँ में हमें लाई है, माँ- की याद हमें अति की आई है । माँ- मैरी, फातिमा और दुर्गा माई है, माँ- ब्रह्माण्ड के कण कण में समाई है । माँ- ब्रह्माण्ड के कण कण में समाई है ।h "अंत में मैं बस ये इक पुण्य का काम करता हूँ, दुनिया की सभी माँओं को दंडवत प्रणाम करता हूँ ।

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