उड़ी उड़ी रे पतंग पतंग के जन्म का ठीक-ठीक लिखित इतिहास तो नहीं मिलता, लेकिन जानकारियों के मुताबिक करीब दो हजार वर्ष पहले एक चीनी किसान ने ठिठोली करते हुए अपनी टोपी को डोरी बांधकर हवा में उडा दिया और वह दुनिया की पहली पतंग बन गयी। कुछ दस्तावेजों की मानें, तो ईसा से 200 वर्ष पूर्व एक चीनी जनरल ने अपने दुश्मनों की टोह लेने के लिए पतंग का सहारा लिया था।
बाद में चीनी व्यापारियों के साथ-साथ पतंग चीन से कोरिया होते हुए समूचे एशिया और फिर हमारे भारत में भी पहुंच गयी। दिलचस्प बात ये है कि पतंग दुनिया में जहां-जहां से गुजरी, वहां-वहां अपना रूप-रंग दोनों बदलती गयी। इतना ही नहीं, सबने इसे अपने-अपने नाम भी दे डाले। यही वजह है कि न केवल अलग अलग देशों में, बल्कि हमारे अपने देश के अलग-अलग प्रांतों में भी पतंग के अनेक रूप और नाम मिलते हैं।
कैसे-कैसे नाम
हम जिसे पतंग के नाम से जानते हैं, वह वास्तव में बहुरुपिया है। आप उसके नामों को जानकर हैरान रह जाएंगे। सिरकटी, तिरंगी, चौकडी, डंडियल, आंखभात, गिलासिया, चुग्गी और ढग्गी- ये सब हमारी पतंग के ही नाम हैं। दिल्ली से लेकर दुबई तक अपनी पतंगबाजी के जलवे दिखा चुके दिल्ली काइट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मोइउद्दीन बताते हैं, पतंग जैसे आसमान में लहराकर उडती है, वैसे ही वह अपने आपमें भी लचीली है। उसे जो चाहे नाम दे दो, वह एकदम बुरा नहीं मानती। न ही इस बात से रूठती है कि उसके रूप-रंग से कोई छेडछाड कर दी गयी। मोइउद्दीन के अनुसार, पतंग को स्टार, मच्छीकाट, चांदबाज, कानबाज, इकन्ना, दोअन्ना, तिवन्नो, चवन्नो, चील पटिया और मुंडिया नामों से भी जाना जाता है। आज के गैजेट्स के दीवाने युवाओं पर भी पतंग का जादू पिछली अनेक पीढियों की तरह सिर चढकर बोल रहा है।
कैसे-कैसे रूप
समय और देश-काल के साथ पतंग ने अपने रूप-रंग को भी लगातार बदला है। पहले कागज की बनी पतंग ही चलन में थी, लेकिन इधर कुछ वर्षो से पॉलिथीन से बनी पतंगों का चलन भी बढ गया है। पॉलिथीन वाली पतंग के प्रशंसक मानते हैं कि ये बारिश होने पर गीली नहीं होती और बारिश के साथ अगर हवा चल रही हो, तो आसमान में लहराती रहती है। इसके अलावा पैराशूट में इस्तेमाल होने वाले कपडे से बनी पतंगें भी चलन में दिखती हैं। बेशक आज भी पतंगबाजों की पहली पसंद वही रंग-बिरंगे कागज से बनी पतंग ही है, जो आसमान में इठलाती, बलखाती हुई सबको रिझा लेती है। इधर कम्प्यूटर की मदद से पतंगों के नए-नए डिजाइन तैयार किए जाने लगे हैं, जिन्होंने इनकी खूबसूरती में और भी चार चांद लगा दिए हैं।
कैसे-कैसे फायदे
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि पतंगबाजी खिलाडियों के भीतर सकारात्मंक ऊर्जा का संचार करती है। जब आप अपनी पतंग को आसमान में ऊंचे और ऊंचे जाते और इठलाते हुए देखते हैं तो भीतर के तमाम विकार अपने आप ही दूर हो जाते हैं। पतंग कल्पनाशील भी बनाती है। इसके अलावा आंखों, हाथों, पैरों व पूरे शरीर की वर्जिश भी कर देती है जरा-सी देर की पतंगबाजी। तन भी खुश और मन भी खुश। किसी ने सच ही कहा है, जिस तरह विपरीत हवा में ही पतंग आसमान में ऊपर की ओर उडान भरती है, वैसे ही विपरीत परिस्थितियों में ही एक इंसान के धैर्य व सामर्थ्य की असली परीक्षा होती है। ये भी पतंग हमें सिखाती है।
आविष्कारों की प्रेरणा
अमेरिकी वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन पतंगबाजी के बेहद शौकीन थे। एक बार जब उन्होंने कडकती बिजली में पतंगबाजी की, तो उन्हें कहां मालूम था कि एक क्रांति होगी। कडकती बिजली में पतंग उडाई, तो उन्हें करंट लगने का अहसास हुआ। फिर सिद्घ हो गया कि यांत्रिक रूप से पैदा बिजली और आकाश में चमकती बिजली एक ही है। इस घटना से बिजली के आविष्कार को प्रेरणा मिली। 1870 में ऑस्ट्रेलिया के लॉरेन्स हाग्रेव ने मानव रहित विमानन में रुचि ली और उन्होंने बनाई बक्से की तरह दिखने वाली पतंग। 20वीं सदी में विमान के विकास में इससे महत्वपूर्ण मदद मिली और राइट ब्रदर्स ने किया विमान का आविष्कार। 1804 में जॉर्ज केली ने ऊंची कमान वाली पतंग बनाई, जो ग्लाइडर की तरह दिखता था। ठीक 14 साल बाद आया दुनिया का प्रथम ग्लाइडर, जो इसी की अगली कडी था।
सोने-चांदी की पतंग
1896 में न्यूयॉर्क ट्रिब्यून नामक अखबार ने मेनहट्टन में अपने अखबार के टॉवर से पतंग उडाकर अमेरिका के प्रमुख चुनाव परिणाम घोषित किये, ताकि इसे हर कोई देख सके। जयपुर के महाराजा पतंगबाजी के खासे शौकीन थे। वे ढाई तोले सोने या चांदी की घुघरी पतंग में बांधते और जमकर पेंच लडाते। सोने की घुघरी वाली कटी पतंग, जिस खुशकिस्मत के हाथ आ जाती, वह मालामाल हो जाता।
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